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राजस्थान की सौर ऊर्जा — हरित विकास या हरित उपनिवेशवाद?
राजस्थान में सौर ऊर्जा (solar energy) को स्वच्छ और हरित ऊर्जा के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसके नाम पर कई पर्यावरणीय और सामाजिक दिक्कतें सामने आई हैं।
पर्यावरण और धरती माँ
रोहित थपलियाल
8/19/2025


राजस्थान को "सूर्य नगरी" कहा जाता है। यहाँ सूरज की तपिश इतनी प्रबल है कि इसे भारत का सौर ऊर्जा केंद्र बना दिया गया है। सरकारें और कॉर्पोरेट घराने इसे भविष्य की हरित ऊर्जा बताकर प्रचारित करते हैं। लेकिन प्रश्न यह है—क्या यह हरित ऊर्जा सच में हरी है? या फिर यह केवल एक नया "हरित उपनिवेशवाद" है, जिसमें लाभ पूँजीपतियों का है और बोझ आम जनता व प्रकृति पर डाला जा रहा है?
पर्यावरणीय दृष्टिकोण — प्रकृति के साथ छेड़छाड़
पेड़ों की कटाई और रेगिस्तानी पारिस्थितिकी पर आघात
भादला और अन्य सौर पार्कों में लाखों पेड़ (विशेषकर खेजड़ी जैसे पारंपरिक पेड़) काटे जा चुके हैं।
खेजड़ी को "रेगिस्तान का फेफड़ा" कहा जाता है—इसके बिना नमी, जैव विविधता और पशुओं का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।
पक्षियों और जीव-जंतुओं पर असर
सौर पैनलों से परावर्तित रोशनी और गर्मी पक्षियों के लिए "भ्रमित करने वाला जाल" साबित हो रही है।
दुर्लभ पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अस्तित्व पर गंभीर खतरा है।
छोटे जीव-जंतु और कीट मिट्टी से विस्थापित हो रहे हैं, जिससे पूरी food chain टूटने की कगार पर है।
जल संकट
रेगिस्तानी इलाके में पानी पहले ही सीमित है, ऊपर से पैनलों की सफाई और रखरखाव में लाखों लीटर पानी खर्च होता है।
इसका सीधा असर कृषि और पशुपालन पर पड़ रहा है।
सामाजिक दृष्टिकोण — किसका विकास, किसकी कीमत पर?
भूमि अधिग्रहण
किसानों और चरवाहों की पारंपरिक जमीनें कॉर्पोरेट घरानों को सौंप दी जाती हैं।
कई जगह पंचायतों की अनुमति (NoC) तक नहीं ली गई, जिससे लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी हुई।
चरवाहों और किसानों की आजीविका पर चोट
राजस्थान का पशुपालन—ऊँट, बकरी और भेड़—चरागाह पर आधारित है।
जब जमीन कंक्रीट और पैनलों से ढक दी जाती है, तो यह जीवन-निर्वाह का आधार छिन जाता है।
न्याय का संकट
"स्वच्छ ऊर्जा" के नाम पर ऐसे प्रोजेक्ट्स को कई पर्यावरणीय और सामाजिक नियमों से छूट दी जाती है।
इससे आम जनता को पर्यावरणीय नुकसान तो उठाना पड़ता है, पर लाभ बड़े कॉर्पोरेट घरानों को मिलता है।
दार्शनिक दृष्टिकोण — विकास की असली परिभाषा क्या है?
यह प्रश्न केवल तकनीकी या नीतिगत नहीं है। यह प्रश्न गहराई में जाकर मानव और प्रकृति के रिश्ते को छूता है।
क्या विकास केवल "बिजली उत्पादन" और "GDP बढ़ाने" का नाम है?
या विकास वह है, जिसमें प्रकृति, समाज और भविष्य सबका संतुलन बना रहे?
यदि हम सौर ऊर्जा के नाम पर पेड़ काटें, पक्षियों को मारें, और ग्रामीणों को विस्थापित करें—तो क्या यह सचमुच हरित ऊर्जा है, या केवल नई तरह का उपनिवेशवाद?
दार्शनिक दृष्टिकोण से देखें तो ऊर्जा का असली अर्थ जीवन को पोषित करना है, न कि जीवन का दोहन। जब ऊर्जा उत्पादन ही जीवन के मूल आधार—जल, जंगल, ज़मीन—को नष्ट कर दे, तो यह ऊर्जा "स्वच्छ" नहीं बल्कि अधूरी और अन्यायी है।
आगे का रास्ता — टिकाऊ और न्यायपूर्ण ऊर्जा
राजस्थान और भारत दोनों को सौर ऊर्जा चाहिए। लेकिन इसकी राह केवल तभी सार्थक है जब:
एग्रीवोल्टैइक्स मॉडल अपनाए जाएँ → जहाँ पैनलों के नीचे भी खेती और चरागाह संभव हो।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) पारदर्शी और सख्ती से लागू किया जाए।
न्यायपूर्ण ऊर्जा संक्रमण को नीति का आधार बनाया जाए—जहाँ लाभ केवल कॉर्पोरेट का नहीं बल्कि किसान, चरवाहा और पक्षी तक पहुँचे।
निष्कर्ष
राजस्थान की धूप अनंत है, लेकिन यह धूप यदि प्रकृति और समाज दोनों को जला दे, तो यह वरदान नहीं अभिशाप बन जाएगी। हमें ज़रूरत है कि हम ऊर्जा को सिर्फ बिजली उत्पादन नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन मानें—जहाँ हरित ऊर्जा सचमुच हरी हो, जीवन को बचाए, न कि लूटे।
यह लेख एक जन-जागरण की पुकार है—
"विकास" तभी सच्चा है जब वह न्यायपूर्ण, टिकाऊ और जीवन-समर्थक हो।


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